हरदोई। असत्य पर सत्य की जीत का प्रतीक पर्व दशहरा यानि विजय दशमी का पर्व आज पूरे देश में हर्ष और उल्लास के वातावरण में मनाया जा रहा है। आज ही के दिन भगवान विष्णु के सातवें स्वरूप भगवान श्री राम ने लंका पति रावण का वध किया था। आज के दिन शाहाबाद कस्बे के मोहल्ला पठकाना रामलीला मेला में रावण वध लीला का मंचन संपन्न होगा। श्री बालकृष्ण लीला संस्थान वृंदावन के कलाकार रामलीला का मंचन कर रहे हैं और रामलीला के सबसे अहम किरदार रावण का रोल मोहन श्याम द्वारा निभाया जा रहा है जिसे दर्शक काफी पसंद कर रहे हैं। हमारे शाहाबाद रिपोर्टर रामप्रकाश राठौर ने रावण का किरदार निभाने वाले मोहन श्याम से बातचीत की। मोहन श्याम ने बताया बचपन से ही उनकी मनोरंजन में रुचि थी और रंगमंच में ज्यादा दिलचस्पी रही है । उनके बड़े भाई भी रामलीला का मंचन करते हैं इसलिए उन्होंने भी रामलीला मंचन को ही अपना प्रोफेशन चुना और श्री बालकृष्ण लीला संस्थान वृंदावन से जुड़ गए। संवाददाता द्वारा यह पूछे जाने पर कि उन्होंने भगवान श्री राम के रोल के बजाय नेगेटिव रोल और रावण का किरदार निभाना ही क्यों पसंद किया। इस पर श्री श्याम का कहना है शरीर से हष्टपुष्ट होने तथा आवाज भारी भरकम होने की वजह से उनको रावण का रोल दिया गया, और जब उन्होंने पहली बार रावण का किरदार निभाया तो खूब तालियां बजीं। बस बजती हुई तालियों ने उन्हें रावण बना दिया। पिछले सात आठ वर्षो से श्री बालकृष्ण लीला संस्थान वृंदावन के साथ जुड़कर वह रावण किरदार निभाते चले आ रहे हैं। पारिवारिक पृष्ठभूमि का जिक्र करते हुए मोहन श्याम बताते हैं कि पांच बहनों के बीच में वह दो भाई हैं और उनकी माताजी हैं। उनके बड़े भाई भी रामलीला का मंचन करते हैं। उन्होंने बताया कि वह तीसरी बार शाहाबाद के पठकाना रामलीला के मंच पर अभिनय करने के लिए उतरे हैं। तब और अब की रामलीला और दर्शकों में काफी बदलाव आ चुका है। मोहन की योग्यता मात्र हाई स्कूल ही है लेकिन उनकी अभिनय क्षमता के आगे योग्यता कोई मायने नहीं रखती। श्री मोहन रावण के किरदार में पूरी तरह से डूब जाते हैं। यह पूछे जाने पर कि रावण का किरदार निभाते वक्त आपको कैसा महसूस होता है। श्री मोहन ने बताया जब वह रावण का किरदार निभाते हैं तो बस केवल उन्हें रावण ही याद रहता है। वह यह भूल जाते हैं कि वह मोहन श्याम भी हैं । दर्शकों की तालियां किरदार में डूब जाने के लिए मजबूर कर देती हैं। मोहन श्याम बताते हैं भगवान श्री राम से युद्ध करते वक्त बस केवल एक बात याद रहती है कि भगवान राम के हाथों ही मरना है, इसीलिए भगवान राम से जमकर दुश्मनी की, अत्याचार किया ताकि उनके हाथों से मेरी मृत्यु हो सके। अंत में मोहन श्याम ने सभी को संदेश देते हुए कहा प्रकांड विद्वान होने के बाद भी रावण को भगवान श्री राम के हाथों मौत झेलनी पड़ी। क्योंकि रावण का अत्याचार बढ़ चुका था, राक्षसी प्रवृत्ति थी। हमेशा सत्य की विजय होती है। विजयदशमी का पर्व असत्य पर सत्य की जीत का प्रतीक पर्व है। उन्होंने कहा हमेशा सच का साथ दें और बुराई से दूरी बनाने का प्रयास करें।