*कृष्ण और कृष्णतत्व*
अक्सर कृष्ण और राधा, कृष्ण और गोपिकाओं के साथ रास रचाते हुए, वात्सल्य रूप में कृष्ण का प्रेम, माखन चोरी , गाय चराना लीलाओं के साथ उनकी कथाओं को भक्ति भाव और श्रद्धा के मानस पटल पर चित्रांकित करने का कार्य हमारे कथावाचकों और पंडितों के द्वारा बखूबी किया गया है l
आज हमारे बच्चे स्कूल से लेकर घरों तक बांसुरी और मोर मुकुट के साथ नृत्य करते दिखाई देते हैं I माता-पिता और परिजन कृष्ण रूप में बच्चों को देखकर आनंदित और वात्सल्य रूपी नदी में पवित्र स्नान करते हैंl ऐसे निश्चल भाव से दर्शन हमारी भारतीय संस्कृति की परंपरा के साथ रग- रग में रचे बसे हैं।
आज भारतवर्ष के इतिहास में पुनः आवश्यकता है उस वात्सल्य रूप से बाहर आते हुए मुरली को छोड़कर सुदर्शन चक्रधारी कृष्ण के रूप को पूजने की बच्चों को नृत्य से बाहर लाकर उनकी युद्ध कलाओं की सीख देने की, गीता ज्ञान के द्वारा कृष्ण के असली तत्व से जोड़कर योगीराज कृष्ण बनाने की ताकि हमारा समाज स्वधर्म की पहचान कर अपने कर्म की महता को स्वीकार करते हुए अपने चरित्र निर्माण के साथ राष्ट्र निर्माण की ओर अग्रसर हो सके l
धर्म और अधर्म के कुचक्र में फंसा हुआ मानव स्वयं के जाल में ही फसता और नष्ट होता दिखाई पड़ रहा है l
आवश्यकता है आज की पीढ़ी (बच्चों को) कृष्ण के उस विराट रूप के दर्शन प्राप्त करने की जहां वे मानव से महामानव बनने के तत्व की पहचान कर सकेl कृष्ण तत्व के मर्म को समझने की जो कि कलयुग के प्रथम चरण में आवश्यक हो गया है l
जीनियस पब्लिक स्कूल हरपालपुर में जन्माष्टमी अवकाश के पूर्व शनिवार को कृष्ण के रूप में सजे धजे बच्चों ने कृष्ण के चरित्र से प्रेरणा लेने हेतु शिक्षा प्राप्त की l
कक्षा में उद्बोधन के दौरान यह बात प्रधानाचार्य के द्वारा कही गई और बच्चों को अधर्म के विरुद्ध हमेशा लड़ने के लिए प्रेरित किया गया।