हरदोई । वैदिक काल में “महिलाओं की स्थिति समाज में काफी ऊँची थी और उन्हें अभिव्यक्ति की पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त थी। उस समय महिलाएं शास्त्रार्थ आदि में पुरुषों की तरह भाग लेती थीं। उसके बाद महिलाओं की स्थिति कमजोर होती गयी लेकिन अब वे सशक्त हो रही हैं और विभिन्न क्षेत्रों में नये-नये कीर्तिमान स्थापित कर रही हैं।
शहीद उद्यान स्थित कायाकल्पकेन्द्रम् के संस्थापक व प्रख्यात् नेचरोपैथ डॉ० राजेश मिश्र ने कहा कि नागपंचमी को गुड़ियों को पीटने की चली आ रही परम्परा बंद करके गुड्डा और गुंडे पीटने की परम्परा का श्रीगणेश करें।
डॉ० मिश्र ने कहा कि नागपंचमी को लड़कियाँ पुराने कपड़ों को साफ करके गुड़िया बनाती हैं और उन्हें सहेलियों के साथ ले जाकर तालाब के किनारे फेंक देती हैं। उन गुड़ियों को लड़के डंडा से पीट-पीटकर मिट्टी में मिला देते हैं। उन्होंने कहा कि गुड़िया ही गुड़िया बनाकर ले जाये और खुशी-खुशी पिटवाये। इससे पीटने-पिटाने के संस्कार पड़ते हैं। उन्होंने कहा छोटी बच्चियों के लिए यह खेल है, यदि उन्हें मना करो तो उनका बाल मन समझता नहीं, क्योंकि संस्कार गहराई में प्रविष्ट हो चुके हैं। कहा उनकी माताएं स्वयं उन्हें लेकर जाती हैं।
डॉ० मिश्र ने कहा कि लड़कियां शान्ति प्रिय और शिष्ट होती हैं, जबकि अधिकांश लड़कों में उद्दंडता बढ़ रही है। वे बात-बात में गाली बकते हैं, विशेष बात यह कि गाली भी अपने दोस्तों को देते हैं और दोस्त भी गाली बकने-सुनने के इतने अभ्यस्त हो गये हैं, इसलिए वे गालियों को किसी पुरस्कार से कम नहीं समझते।
डॉ० मिश्र ने कहा कि इक्कीसवीं सदी की सशक्त महिलाओं को अब गुड़िया नहीं, पुराने कपड़ों के गुड्डा और गुंडे बनाकर लाठी से पीटने की नयी परम्परा प्रारम्भ करनी चाहिए। डॉ० सरल कुमार ने इस त्योहार की परम्परा के बारे में जानकारी देने के साथ कहा कि यह परम्परा बदलनी चाहिए। डॉ० श्रुति दिलीरे और दीपाली ने कहा कि उन्होंने कभी गुड़ियों के इस त्योहार को नहीं मनाया।