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नारद जी की तपस्या से देवराज इंद्र का सिंहासन हिल गया

नारद जी की तपस्या से देवराज इंद्र का सिंहासन हिल गया

हरदोई। रामलीला के तीसरे दिन नारद मोह लीला का मंचन वृंदावन धाम से पधारे गोविंद गोपाल लीला संस्थान के द्वारा नुमाइश मैदान में किया गया।

 एक बार नारद हरि गुण गाते हुए हिमालय की गुफा में पहुंच गए और वहां जाकर समाधि लगाकर बैठ गये उस समाधि के प्रताप से देवराज इंद्र का सिंहासन हिल गया। यह देखकर देवराज इंद्र डर गया की कोई मेरा  पद छीनने के लिए तप कर रहा है तो वह अपने मित्र कामदेव को देव ऋषि नारद जी का ध्यान भंग करने के लिए भेजता है। कामदेव वहां जाकर अपने पांचो वाणो का प्रयोग नारद जी के ऊपर करता है परंतु नारद जी पर उसके पांचो वाणो का कोई प्रभाव नहीं पड़ता तो यह देखकर कामदेव डर जाता है और नारद जी की शरण में पहुंच जाता है। जब नारद जी का ध्यान खुलता है तो देखते हैं कामदेव चरणों में पड़ा है वह कामदेव सारा वृत्तांत कहकर नारद जी को बताता है तो नारद जी उसे क्षमा कर देते हैं और मन में बड़े प्रसन्न होते हैं कि आज मैंने काम क्रोध दोनों को विजय प्राप्त की है। यह समाचार वह भोलेनाथ और ब्रह्मदेव को सुनते हैं तो विष्णु भगवान को बताने के लिए वो मना करते हैं लेकिन नारद जी विष्णु भगवान को बता देते हैं तो विष्णु समझ जाते हैं कि नारद जी को अभिमान हो गया है। वह अपनी माया से एक राजा और एक नगर बसते हैं जिसमें राजा की पुत्री का स्वयंवर हो रहा होता है। नारद जी वह उसे राजकुमारी को देखते हैं तो विवाह करने का मन बना लेते हैं तब विष्णु भगवान के पास उनका सुंदर रूप लेने पहुंच जाते हैं लेकिन भगवान उनको बंदर बनाकर भेज देते हैं तो स्वयंवर में उनकी हंसी हो जाती है तो नारद जी भगवान को श्राप दे देते हैं कि तुम मनुष्य रूप में जाकर पृथ्वी पर ऐसे ही रोओगे जैसे आज मैं पत्नी के लिए रो रहा हूं। यह चरित्र देखकर भक्त बड़े आनंदित हुए। इस अवसर पर संभ्रांत नागरिक, सैकड़ों भक्त गण , महिलाएं उपस्थित रहीं।

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