हरदोई। सर्वत्र संस्कृतं के क्रम में आधुनिक भव संस्कृतं वद अभियान के अंतर्गत हरदोई की बहुभाषाविद साहित्यकार डा. मिथिलेश कुमारी मिश्र, पूर्व निदेशक विहार राष्ट्र भाषा परिषद, पटना एवं विहार संस्कृत समाज की महासचिव का जयंती समारोह 3 दिसम्बर का उद्घाटन उप्र शासन के विशेष सचिव, गृह एवं प्रधान संरक्षक डॉ. अनिल कुमार सिंह, आईएएस करेंगे।
समारोह की सहभागी एवं श्री सरस्वती सदन, हरदोई की लाइब्रेरियन सीमा मिश्र के अनुसार 3 दिसम्बर को उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ के निराला सभागार में अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. मुकेश कुमार ओझा की अध्यक्षता में हो रहे संस्कृत साधक सम्मान समारोह के मुख्य अतिथि सेवानिवृत्त आईएएस शिवाकांत द्विवेदी और विशिष्ट अतिथि संयुक्त निदेशक, पेंशन, उप्र धर्मेन्द्रपति त्रिपाठी होंगे।
संस्कृतज्ञों को सम्मानित किया जाएगा
समारोह में हरदोई जनपद से लेकर लखनऊ, दिल्ली, पटना सहित देश भर से आने वाले संस्कृतज्ञों को डॉ. मिथिलेश कुमारी मिश्र संस्कृत साधक सम्मान से सम्मानित किया जाएगा। साथ ही विदुषी डॉ. मिथिलेश कुमारी मिश्र के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर परिचर्चा सत्र भी होगा जिसमें नव नालंदा विश्वविद्यालय पटना के प्रोफेसर डा. विजय कर्ण व गंगा देवी महाविद्यालय, पटना की सह आचार्या डॉ. रागिनी वर्मा और अरविंद महाविद्यालय दिल्ली विश्वविद्यालय के सहायक आचार्य पी. कुमार सहित दिल्ली पब्लिक स्कूल लखनऊ की प्रवक्ता डॉ. अंशू शुक्ला व हरदोई के ख्यातिलब्ध कवि वेदव्रत वाजपेयी का व्याख्यान होगा।
परिचर्चा में नगर पालिका कन्या महाविद्यालय कासगंज एटा की प्रोफेसर डॉ. किरण प्रकाश और दिल्ली विश्वविद्यालय की नीलम खाशा, गुरुग्राम हरियाणा के संस्कृतज्ञ प्रदीप कुमार सहित रांची विश्वविद्यालय की मनीषा बोदरा, लखनऊ की डॉ. मंजूलता चौहान, मथुरा की प्रेमलता आदि संस्कृतज्ञ वक्ता के रूप में विचार रखेंगे। ज्ञातव्य हो कि संस्कृत को जन-मन तक पहुंचाने के लिए विदुषी डॉ. मिश्र ने संस्थापक सदस्य/सलाहकार सम्पादक के रूप में कानपुर से दैनिक संस्कृत समाचार पत्र “नवप्रभातम्” का प्रकाशन शुरू कराया। उनकी संस्कृत की ‘आम्रपाली’ पुस्तक वनस्थली विद्यापीठ में शामिल रही। हिन्दी, संस्कृत, प्राकृत, तमिल, तेलगु, कन्नड़, अंग्रेजी आदि भाषाओं की विदुषी डॉ. मिथिलेश कुमारी मिश्र ने भाषा संगम के समन्वयक के रूप में उत्तर और दक्षिण भारत को जोड़ने में विभिन्न भाषाओं की पुस्तकों के अनुवाद व शोधकार्य को भाषा-सेतु बनाया। इस तरह उन्होंने विभिन्न भाषाओं में 42 पुस्तकों की रचना की और सम्पादन किया।
हिन्दी महाकाव्य की प्रथम महिला रचयिता
विदुषी डॉ. मिश्र ने पौराणिक कथानक से जुड़ा ‘देवयानी’ ग्रन्थ रचकर हिन्दी जगत में महाकाव्य रचयिता के रूप में प्रथम महिला महाकाव्य रचनाकार का श्रेय प्राप्त किया।
थाई ‘रामायण’ और प्राकृत की ‘गउडबहो’ का पद्यानुवाद
विदुषी डॉ. मिश्र ने थाई रामायण ‘श्रीरामकीर्तिम्’ का पद्यानुवाद कर हिन्दी को विश्वमंच पर बढ़ावा दिया। थाई रामायण के अनुवाद के लिए थाईलैंड की राजकुमारी द्वारा उन्हें बैंकाक साहित्य सम्मेलन में सम्मानित किया गया था। प्राकृत भाषा से गउडबहो का प्रथम अनुवाद किया जो लखनऊ विश्वविद्यालय में शामिल है।