हरदोई । शासन हो या समाज, हिन्दी की स्थिति कहीं भी सन्तोषप्रद नहीं है। हमारे यहां अधिकांश कार्य अंग्रेजी में होता है।
शहीद उद्यान स्थित कायाकल्पकेन्द्रम् में ‘हिन्दी दिवस’ पर वरिष्ठ नेचरोपैथ डॉ० राजेश मिश्र ने कहा कि १४ सितम्बर १९४९ को संविधान सभा ने यह निर्णय लिया था कि हिन्दी केन्द्र सरकार की आधिकारिक भाषा होगी परन्तु सरकार का दृष्टिकोण यह है कि जब तक कोई भी राज्य हिन्दी का विरोध करता रहेगा तब तक हिन्दी में राजकाज नहीं चलेगा। उन्होंने कहा कि तुर्की के कमालपाशा जैसी संकल्प शक्ति हो तो १५ सितम्बर की भोर होते ही राज-काज हिन्दी में प्रारम्भ हो जायेगा।
डॉक्टर मिश्र ने कहा कि रिक्शा चालक यूनिवर्सिटी जानता है, विश्वविद्यालय नहीं। डीएम ऑफिस जानता है, जिलाधिकारी कार्यालय नहीं। शहर से लेकर गाँवों तक रसोई, चौका की जगह किचन शब्द खूब बोला जाता है। उन्होंने कहा कि मामा-मामी, चाचा-चाची, ताऊ-ताई, मौसा-मौसी, फूफा-बुआ कहने से सम्बन्ध का पता चल जाता है, जबकि अंकल-आंटी कहने से नहीं। कहा आश्चर्य तो उन्हें तब हुआ जब एक उधारू-मानसिकता के महाशय अपने बच्चे से ताऊ को बड़े पापा और चाचा को छोटे पापा कहलवा रहे थे।उन्होंने कहा कि यह एक ऐसी मानसिक बीमारी पनप रही है, जो जल्दी खत्म नहीं होगी। श्री मिश्र ने कहा कि हिन्दी की गिनती बोल तो रहे हैं परन्तु न लिखना जानते हैं, न पढ़ना। उन्होंने कहा कि हिन्दी दिवस पर हिन्दी लिखने-पढ़ने और बोलने का व्रत लें। इस अवसर पर कायाकल्पकेन्द्रम् के सदस्य व चिकित्सार्थी उपस्थित रहे।