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इस बार दलितों में दिखा संविधान बचाने का जज्बा

इस बार दलितों में दिखा संविधान बचाने का जज्बा

शाहाबाद हरदोई । हरदोई सुरक्षित लोकसभा चुनाव का परिणाम घोषित हो चुका है। इस चुनाव में कहने को तो भारतीय जनता पार्टी, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने अपने प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतरे थे लेकिन अंतिम समय में मुकाबला भाजपा और सपा के बीच सिमट कर रह गया था। बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी का बाहरी होना और संविधान बचाने का जज्बा कैडर वोटरों को आकर्षित नहीं कर सका, इसलिए मुख्य मुकाबला भाजपा और सपा के बीच सिमट कर रह गया। बसपा प्रत्याशी को बुरी तरह पराजित होना पड़ा। हरदोई सुरक्षित लोकसभा क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी ने अपने सांसद और प्रत्याशी जयप्रकाश रावत, समाजवादी पार्टी ने अपनी पूर्व सांसद उषा वर्मा को प्रत्याशी बनाकर चुनाव मैदान में उतारा। नामांकन से ठीक पहले बहुजन समाज पार्टी ने काफी जद्दोजहद के बाद इटावा के रहने वाले एमएलसी भीमराव अंबेडकर को प्रत्याशी बनाकर चुनाव मैदान में भेजा। हरदोई जनपद का प्रत्याशी न होने के कारण बहुजन समाज पार्टी के कैडर वोट को एक झटका लगा। बसपा के कैडर वोट में यह भावना घर कर गई थी कि उसका प्रत्याशी बाहरी है और बाहरी प्रत्याशी को क्षेत्र के लोग पसंद नहीं करेंगे। दूसरे भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी जगह-जगह जनसभाएं और मीटिंग करके मतदाताओं से संपर्क में बनाते रहे। वहीं बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी ने मात्र एक बार शाहाबाद नगर क्षेत्र में प्रवेश करके दो-तीन स्थानों पर बैठक की और निकल लिए। उसके बाद मतदान तक बसपा प्रत्याशी के दर्शन नहीं हुए। बसपा प्रत्याशी के चुनाव कार्यालय पर भी सन्नाटे जैसी स्थिति बरकरार रही। यहां के बसपा कार्यकर्ता न तो मीडिया से संपर्क में रहे और न ही मतदाताओं से कोई संपर्क साध पाये। अलबत्ता यहां के कार्यकर्ता सोशल मीडिया पर अपनी बयान बाजी करके और फोटो सेशन कराकर बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी को त्रिकोणीय संघर्ष में बताते रहे। दलित वोटरों ने प्रत्याशी घोषित होने के बाद ही बाबा साहब भीमराव अंबेडकर द्वारा लिखे गए संविधान बचाने का प्रण कर रखा था। बहुजन समाज पार्टी के अधिकांश कैडर वोट ने प्रत्याशी घोषित होने के बाद यह बात कहनी प्रारंभ कर दी थी कि उसका प्रत्याशी जीत के द्वार तक नहीं पहुंच सकता है ऐसे में उन सबको संविधान की रक्षा करने के लिए कोई दूसरा रास्ता तलाशना होगा। इसलिए कैडर वोट के छिटक जाने की संभावनाएं प्रबल हो गई थीं। 13 मई को चुनाव के दिन भी अधिकांश मतदान केंद्रों पर बहुजन समाज पार्टी का फट्टा बिछाने वाले कार्यकर्ता नजर नहीं आए। जो उत्साह और उमंग बहुजन समाज पार्टी के कैडर वोट में देखी जाती थी। इस बार कैडर वोट में वह उमंग नहीं देखी गई। बसपा प्रत्याशी के नामांकन करने के बाद से मतदान की तिथि तक बहुजन समाज पार्टी के समर्थक यही बात कहते हुए सुने गए कि इस बार उन्हें हर हाल में संविधान की रक्षा करनी है और संविधान की रक्षा करने के लिए वह किसी भी स्थिति से गुजर सकते हैं। परिणाम यह हुआ कि चुनाव के अंतिम समय में मुख्य मुकाबले में भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी ही रह गई। नगर क्षेत्र के बहुजन समाज पार्टी के कार्यकर्ताओं ने भी पार्टी प्रत्याशी के बाहरी होने और स्थिति अच्छी न होने की वजह से प्रचार और जनसंपर्क में कोई रुचि नहीं रखी। केवल शाम के वक्त कार्यालय में जमावड़ा लगाकर वक्त गुजारने में लग रहे। बहुजन समाज पार्टी का कैडर वोट हमेशा पार्टी के प्रत्याशी के खाते में गया है लेकिन इस बार कैडर वोट में संविधान बचाने का जज्बा देखे जाने से एक कयास लगाया जा रहे थे कि इस बार बहुजन समाज पार्टी का कैडर वोट कोई नया गुल खिला सकता है। चुनाव परिणाम में हकीकत को सामने रख दिया बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी को करारी हार का सामना करना पड़ा।

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