रिपोर्ट: कमलेश कुमार
हरदोई में मल्लावां क्षेत्र के बंदीपुर में शांति सत्संग मंच के 50 वें रजत जयंती समारोह के आध्यात्मिक प्रवचन एवं संत सम्मेलन के चौथे दिन जगद्गुरु स्वामी आत्मानंद सरस्वती जी महाराज ने हजारों श्रोताओं को अपनी ओजस्वी एवं अविरत वाणी से ज्ञान गंगा में सरोवर किया। उन्होंने कहा कि 21 वीं सदी का मानव भौतिकवाद के चकाचौंध से भारतीय संस्कृति के स्थान पर पाश्चात्य संस्कृति का शिकार बनाकर धर्म के प्रति अनशक्त हो गया है जो कि आज का पतन का कारण है।आज भारत जैसे महान राष्ट्र को भारतीय संस्कृति की उपासना की दिव्य आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि आज के परिवेश में युवा पीढ़ी में संस्कार लाने की परम आवश्यकता है क्योंकि युवाओं पर ही देश का भाग्य निर्भर होता है चरित्रवान और समाज सेवी युवाओं के द्वारा ही देश का कल्याण संभव है।
अयोध्या से पधारे रसिक पीठाधीश्वर स्वामी जन्मेजय शरण जी महाराज ने कहा कि जीवन के परिवर्तन के लिए ईश्वर का चिंतन बहुत आवश्यक है बिना ईश्वर के चिंतन के बिना हम स्वयं में परिवर्तन नहीं ला सकते। उन्होंने कहा कि संतों के पास चरित्र बल होता है इसलिए वह बाहुबल से नहीं डरते और निस्वार्थ भावना से प्रयास करते है। आज मनुष्यों को संस्कार के अभाव के कारण धीरे-धीरे चारित्रिक पतन हो रहा है और अपनी भारतीय संस्कृति व सनातन धर्म को भूलता जा रहा है । उन्होंने कहा कि जब मनुष्य का अहंकार शून्य हो जाता है तो हम ईश्वर के प्रति विश्वास और प्रेम बढ़ने लगता है । मानव का शरीर मिलना बड़ा ही दुर्लभ है, जब मनुष्य जन्म मिलता है तो हम उसे व्यर्थ में गंवा देते हैं । भगवान की प्राप्ति तभी होगी जब आप अपने को भगवान को समर्पित कर देंगे।
चित्रकूट धाम से पधारे जगद्गुरु कामदगिरि पीठाधीश्वर स्वामी राम स्वरूपाचार्य जी महाराज ने कहा कि मनुष्य के अंदर संस्कारों को लाने के लिए रामचरितमानस को पढ़ते हुए जीवन में उतारना परम आवश्यक है प्रभु श्री राम जी के आदर्श को अपने जीवन में ढाल कर ईश्वर की प्राप्ति की जा सकती है।
हनुमत पीठाधीश्वर जगतगुरु स्वामी धीरेंद्र आचार्य जी महाराज ने बताया कि राम कथा सुख का अनुभव कराती है । राम कथा के माध्यम से उन्होंने बताया कि जीवात्मा का मिलन परमात्मा से केवल महात्मा के द्वारा ही हो सकता है । राम कथा के माध्यम से संत का महत्व मानव जीवन में बहुत आवश्यक है।रामचरित्र मानस में दो संत हैं हनुमान जी और भारत की हैं, हनुमान जी एक संत के रूप में विभीषण को राम से मिलते हैं,संत केवल वेशभूषा से ही पहचाने जाते हैं उनके चरणों में आचरण और त्याग होता है संत के अंदर और बाहर वैराग्य ही होता है।
ईश्वर की प्राप्ति के लिए हमें दृष्टि नहीं दृष्टिकोण चाहिए । परमात्मा ने हमें दृष्टि दी है दृष्टिकोण चाहिए,लेकिन हमारा दृष्टिकोण नकारात्मक होने की वजह से सुख और शांति का अनुभव नहीं हो पाता । हमें अपना दृष्टिकोण नकारात्मक के बजाय सकारात्मक बनाएं तो उसके साथ ही हमारी दृष्टि भी बदल जाती है । सृष्टि नहीं बदली बल्कि हमारी दृष्टि बदल गई है । ईश्वर ने हमको दृष्टि जरूर दी है दृष्टिकोण संत की शरणागति जाने पर ही बदलता है। इसी क्रम में संत सम्मेलन में पधारे कई संत महात्माओं ने अपनी ओजस्वी वाणी के द्वारा ज्ञान की गंगा बहाकर लोगों को श्रेष्ठ जीवन जीने की प्रेरणा प्रदान की।
इस 50वें वर्ष शांति सत्संग मंच के आध्यात्मिक प्रवचन एवं संत सम्मेलन की व्यवस्था को सुरेश चंद्र,दिनेश चंद्र,उमेश चंद्र ,प्रकाश चंद्र एवं संतोष चंद्रगुप्त ने संभाला ।
मंच का संचालन डॉ अशोक चंद्रगुप्त ने किया ।